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बाबू मामा (कविता)

  • Writer: Vishank Singh
    Vishank Singh
  • Apr 28, 2022
  • 2 min read

Updated: May 4

कानपुर शहर था, चुन्निगंज का मोहल्ला था, एक गली थी ईदगाह की दूजी में परमट मंदिर था, पीपल था, पीपल के नीचे पुराने लक्ष्मी गणेश पड़े, सटा चबूतरा, चबूतरे के पास एक मज़ार में पीर पड़े, पीर बग़ल एक दारू का ठेका, लोग बनाकर भीड़ खड़े, और खड़ा रहता एक रिक्शा, पर गिरे पड़े रहते बाबू मामा।

चलाते रिक्शा चुन्निगंज में, मेरी अम्मा ने भाई बनाया था , दारू के आशिक़, चरस के मजनू, ईमान के पक्के बाबू मामा.

गंगा मेला पर अबीर उड़ाएँ, घर घर घुस इफ़्तारी खाएँ, गुरुपरब पे छबील पिलाते, कौन धरम थे बाबू मामा?

अम्मा बनाती मुर्ग़-दो-प्याज़ा तो एक टुकड़ा उनको भी जाता, हलाल-झटका कुछ ना देखें, लेग-पीस मिले तो खुश बाबू मामा।

स्कूल में आते रिक्शा लेकर, मैं चिल्ला के चढ़ता 'बाबू मामा, बाबू मामा', अमीर चढ़ाए तेवड़ियाँ पूछें, ये रिक्शे वाला भला कैसे तेरा मामा?

अरे प्यार क्या जाने कौन है राजा, और कौन भिखारी है, प्यार करें जो वो सब हैं बंदर, बस ऊपर वाला मदारी है।

और फिर एक दिन आया, रात सा काला दिन, उस दिन ना तो स्कूल खुला ना मिलने आए बाबू मामा।

कोई चिल्लाया 'अरे दंगा हुआ', इंसान कपड़े पहन के भी नंगा हुआ, जो दरवाज़े खुले थे रहते सबके लिए, अचानक से उनपर कुंडा हुआ।

आग में हसन मोची की दुकान जली, फिर अख़्तर वकील की बाइक जली, आग ना जानी धरम किसी का, शुक्ला का घर और मिश्रा की कमाई जली।

राख हुई दानिश की दुकान, जहां से पापा लुचई अम्मा के लिए लाते। ख़ाक हुआ शैला ब्यूटी पार्लर, जिसके सामने खड़े लड़के गप्प लड़ाते।

जिस छत पर खेले थे कल तक, जहां कबूतर अकील ने पाले थे, सब झुलस गया था उस दिन, छत पर आग के दाग काले काले थे।

जल गयी तुलसी, तड़पा पीपल, कोई ना आया खोल के दरवाज़ा। जल गया वो चबूतरा, वो खंबा, वो रिक्शा जिसके मालिक थे बाबू मामा।

शबनम बुआ का वो शीशा जो हमने क्रिकेट खेल बस चिटकाया था, आज किसी ने तोड़ दिया था, सड़क पे टुकड़े बिन रहे थे बाबू मामा

उन्होंने पी राखी थी शराब, और इंसान पी रहे थे खून सड़कों पर, मम्मी ने अंदर बुलाया उनको, उस दिन बात ना माने बाबू मामा

उस दिन मुझको पता चला मैं हिंदू था, वो मुस्लिम थे फ़रक क्या पड़ता इससे, अब मिलने नहीं आते बाबू मामा



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"You drown not by falling into a river, but by staying submerged in it."

 

- Paulo Coelho

© Vishank Singh

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